Monday, April 15, 2013

चलता जा रहा हूँ ....

  


चलता जा रहा हूँ इसी फिराक़ में

शायद वो शहर-ए-आम  मिल जाये 

जिन गलियों में कभी रहा करती थीं वो

उनमें बीते पलों के कुछ निशां मिल जाएं 

घरौदें तो बिखर गए वक़्त के तूफ़ान  में

फिर भी उम्मीद यही है कि

 शायद वो मकान मिल जाये

चलता जा रहा हूँ इसी फिराक़ में



वर्षों से चलते आ रहे इस थके दिल को आराम मिल जाये

 जो पूरें ना हो सकें उन अरमानों को अंजाम मिल जाए 

और जो बयां ना कर सका ,रह गए दिल में

उन एहसासों को मुक़ाम मिल जाये 

चलता जा रहा हूँ इसी फिराक़ में




Sunday, January 22, 2012

मुझे पता है...ख़बर थी


मुझे पता है...ख़बर थी 
तुझसे मिलना ही खुशियों की सहर थी
मुश्किल था तुझे पाना
फिर भी ताउम्र तेरी चाहत रही  
कुछ कहने लगे थे की हूँ मैं अंधा
या फिर एक बावला बन्दा
ढूंढता रहा चंदा अमावस की रात में
इसे मोहब्बत कहे या नादानी
ग़र कहो मोहब्बत,तो मोहब्बत ही सही
अब तक है आस तो नादानी भी नहीं
तब भी तू थी वहीँ,और अब भी है वहीँ
मुझे पता है...खबर थी


वीरानी सी है अब ये ज़िन्दगी,रंजो ग़म से भरी
बिन तेरे न हो पाएगी कभी ये फिर हरी   
जाना था तो चली जाती
पर चन्द अलफ़ाज़ सुन जाती
दिल की बात ज़ुबा तक न आ सकी
अब है यही आरज़ू ,तू सुन ले वो अनकही
ग़र तू थी सही ,तो मै भी था ग़लत नहीं
मुझे पता है...ख़बर थी

Saturday, December 31, 2011

लहरें.... ये ज़िन्दगी

लहरें.... ये ज़िन्दगी
ढूंढे अपना साहिल
कोई किनारा..... अपनी मंजिल 
कभी चढ़ती,तो कभी उतरती लहरें....
ये ज़िन्दगी ....बेख़ौफ़ ,बेपरवाह तोड़े सारे पहरे
क्या ज़िन्दगी है, इन मौजों की
मिलेगा साहिल,या मिल जाएँगी भंवर में
क्या ठिकाना ...किसको है पता ये ज़िन्दगी
ले जायेगी कहाँ.....क्या दिखाएंगी लहरें.... ये ज़िन्दगी
उन्मादी  तरंगे,टकरा कर साहिल से
बहा ले जाए रेतीले सपनें 
जाने कैसे कब मिलें,बने,बिछड़े अपने
हर बार इक नई उमंग
से उठतीं ये तरंग
पर मंजिल वही किनारा है 
इठलाती ,बलखाती  दूर चलती जाती
उछलती ,उफनती कहती यही जीवन धारा है
गिर के उठना सिखातीं लहरें.... ये ज़िन्दगी....







Thursday, December 8, 2011

आज जब तुम नहीं हो तो सोचता हूँ.....



चाहा है तुम्हे ,था तुमसे प्यार 
पर ना किया कभी इज़हार  
मुझे लगा शायद तुम सब समझते हो 
लेकिन तुम कभी ना थे इतने समझदार 
या फिर सब जानते हुए  भी बनते रहे अनजान 
आज जब तुम नहीं हो तो सोचता हूँ ........

 


सोचता हूँ काश एक बार क़ह देता 
कर देता इज़हार 
पर जाने किस अनहोनी से डरता था 
शायद डर था उस दोस्त को खोने का 
जो मिला था  ढूढने में प्यार 
पर अब तो ना वो दोस्त है ना वो प्यार 
क्या फर्क पड़ जाता
की  जो आज खोया  है कल मिला ना होता
आज जब तुम नहीं हो तो सोचता हूँ....




 शायद मै गलत था , मैंने गलती करी
तुममें  एक दोस्त खोजने  लगा था 
"दोस्त"जो तुम्हारे शब्दकोष में अपरिभाषित है ,अर्थहीन था 
और आज जब तुम नहीं हो तो सोचता हूँ ..... 
 
सोचता हूँ मैंने क्या है हारा
 मन तो कहता है , मैंने कुछ  नहीं है हारा
पर ये दिल है की सुनता ही नहीं 
मै तो समझ  गया ,पर इस दिल को कौन समझाए 
और अब बिन तेरे कैसे जिया जाए 
आज जब तुम नहीं हो तो सोचता हूँ .............





Tuesday, April 5, 2011

someone somewhere......


  Thinking the world full of apathy
  feeling alone being cynic
  in the life nothing went chronic
  searching for success, always broke the queue and
  never knew someone somewhere is waiting for you.

  Unable to evaluate what you have,what you got
  i am in loss was what you always thought
  being attracted by others trait
  never recognized yourself
  you too were much special
  you never knew, someone somewhere is waiting for you.

  Half the voyage completed still much due
  for completion of this voyage needed a supportive crew 
  running after beauty,searching the one you drew  
  the one which never existed,which was never true
  beauty lies in the nature,leaves with drops of dew and
  you never knew, someone somewhere is waiting for you.






Friday, March 25, 2011

काश....

                              दिल में बसी है तू ,होंठो पे है तेरा नाम 
                              जुड़ के तुझसे हम हो गए बदनाम 
                              इस बदनाम से मोहब्बत न थी तुझे गँवारा
                              अब तो थीं तेरी यादें बस सहारा
                              और अब.... 
                              जो तेरी याद आती है तेरा मैं नाम लेता हूँ 
                              तड़प जाता है दिल तरस जाती है प्यास
                              देख तेरी तस्वीर उसे मैं चूम लेता हूँ
                              रो रहा है दिल कह रहा है मन
                              आएगी तू एक दिन मचल जाएगा ये तन
                              जी रहा हूँ मै लेकर यही आस
                              आएगी तू शायद एक दिन....काश....

Wednesday, September 29, 2010

my life... an endless voyage....

I was  determined to complete my endless voyage 
to stand herein this world ages by age
not being centenarian,but by deeds
fulfilling all my wants and needs 

as i started, full of vigor,being on apex
crossing all  vortex  
swimming across the seas full of worries
lying on the ground of happiness
and flying in the sky of joy.



but the time  never remains the same  
sometime athlete and sometime lame
an interview with death changed the lifestyle 
i was no more determined,not confident while
being deserted,feeling desolate 
condemning and trying to change my fate 

still...there is a hope,i think can cope
so gradually ascending towards the shore 
to complete my endless voyage 
and stand herein this world ages by age ....

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