रह गए है बनके बोझ, खो गए है इस निशा में
हैं गरीबी के हारे, मजदूरी के सहारे
मालूम नही उन्हें, जाना है किस दिशा में
शिक्षा इनका भी अधिकार है
ये भी ईश्वर की संतान हैं
है उन्हें भी एक आशा
बढ़ने की उनकी भी है अभिलाषा
बंधी है एक उम्मीद, जगी है आशा
है विश्वास कम होगी उनकी निराशा
और पूरी होगी उनके बढ़ने की अभिलाषा
आओं मिल के इस उम्मीद को बढ़ाये
उनके सपनो को हकीकत बनाये
और इस मानवता की श्रृंखला में खुद भी जुड़ जाये ||
4 comments:
nice one sirji...we must help dem out to secure their future.
very good boy......now dis poem tell wht d rights of poor people...faaduu
good job.....keep it up
thnx suvi,alok n amit ....
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