Saturday, September 25, 2010

उम्मीद....एक आशा

थी जिनसे उमीदें, थी जिनसे आशाएं 
रह गए है बनके बोझ, खो गए है इस निशा में 
हैं गरीबी के हारे, मजदूरी के सहारे 
मालूम नही उन्हें, जाना है किस दिशा में 
शिक्षा इनका भी अधिकार है 
ये भी ईश्वर की संतान हैं
है उन्हें भी एक आशा 
बढ़ने की उनकी भी है अभिलाषा 
बंधी है एक उम्मीद, जगी है आशा 
है विश्वास कम होगी उनकी निराशा 
और पूरी होगी उनके बढ़ने की अभिलाषा 
आओं मिल के इस उम्मीद को बढ़ाये 
उनके सपनो को हकीकत बनाये 
और इस मानवता की श्रृंखला में खुद भी जुड़ जाये ||

4 comments:

Unknown said...

nice one sirji...we must help dem out to secure their future.

KinZu said...

very good boy......now dis poem tell wht d rights of poor people...faaduu

Suvrat said...

good job.....keep it up

manish said...

thnx suvi,alok n amit ....

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