चलता जा रहा हूँ इसी फिराक़ में
शायद वो शहर-ए-आम मिल जाये
जिन गलियों में कभी रहा करती थीं वो
उनमें बीते पलों के कुछ निशां मिल जाएं
घरौदें तो बिखर गए वक़्त के तूफ़ान में
फिर भी उम्मीद यही है कि
शायद वो मकान मिल जाये
चलता जा रहा हूँ इसी फिराक़ में
वर्षों से चलते आ रहे इस थके दिल को आराम मिल जाये
जो पूरें ना हो सकें उन अरमानों को अंजाम मिल जाए
और जो बयां ना कर सका ,रह गए दिल में
उन एहसासों को मुक़ाम मिल जाये
चलता जा रहा हूँ इसी फिराक़ में
1 comments:
Really nice sir, have to work with the posted font size, has a lil visibility issue!! but the post was Awesome!
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